22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर हुआ बर्बर आतंकी हमला, जिसमें 26 जानें गईं और 20 लोग घायल हुए, पूरे देश को गम और गुस्से से भर गया है। यह हमला केवल एक हिंसक घटना नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, उसकी शांतिप्रियता और कश्मीर में लौटती समृद्धि पर कायराना प्रहार था। जिस निर्ममता से पीड़ितों का धर्म पूछकर, आयतें सुनाने को कहकर उनकी हत्या की गई, वह आतंकवाद के घिनौने, सांप्रदायिक चेहरे को उजागर करता है। पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा की शाखा, द रेजिस्टेंस फ्रंट द्वारा इस हमले की जिम्मेदारी लेना कोई आश्चर्य की बात नहीं है; यह पाकिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ लगातार चलाए जा रहे छद्म युद्ध का एक और सबूत है।
इस जघन्य कृत्य के बाद देश भर में उठी आक्रोश की लहर के बीच, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने केवल निंदा या कूटनीतिक विरोध तक सीमित न रहकर, त्वरित और अभूतपूर्व रूप से कठोर कदम उठाए हैं। यह कदम उस नए भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाते हैं जो आतंकवाद के सामने घुटने टेकने को तैयार नहीं है, जो यह समझता है कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। जब एक पड़ोसी मुल्क लगातार आतंकवाद, बम, गोलियां और ड्रग्स भेज रहा हो, तो दूसरा पक्ष शांति की उम्मीद में चुप नहीं बैठ सकता या आतंकियों से बातचीत का राग अलाप नहीं सकता। पहलगाम हमले के जवाब में भारत की मोदी सरकार द्वारा लिए गए कठोर निर्णय पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देते हैं कि आतंकवाद को राष्ट्रीय नीति के रूप में इस्तेमाल करने की कीमत चुकानी होगी। मोदी सरकार द्वारा एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से तब तक के लिए स्थगित कर दिया गया है, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को त्याग नहीं देता। यह दर्शाता है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए दशकों पुरानी संधियों पर भी पुनर्विचार करने से नहीं हिचकेगा। सहयोग और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। इसके साथ ही, अटारी को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है। कूटनीतिक मोर्चे पर, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा पर रोक लगा दी गई है और पूर्व में जारी सभी वीजा रद्द कर दिए गए हैं। नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में रक्षा/सैन्य, नौसेना और वायु सलाहकारों को एक सप्ताह में भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है। ये सभी कदम आतंकवाद के प्रति भारत के कठोर एवं मजबूत रुख को रेखांकित करता है।
आज जब भारत आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है, तो यह याद करना आवश्यक है कि पहले की सरकारों का रवैया कैसा था। कांग्रेस/यूपीए शासनकाल में भारत ने इतिहास के कुछ सबसे भयानक आतंकी हमले झेले, लेकिन प्रतिक्रिया अक्सर ढुलमुल, अप्रभावी और केवल कागजी खानापूर्ति तक सीमित रही। क्या हम 26/11 मुंबई हमला भूल सकते हैं? 10 पाकिस्तानी आतंकवादी समुद्री रास्ते से आए और भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को रक्तरंजित कर दिया। 166 निर्दोष लोग मारे गए, घंटों तक ताज और ओबेरॉय जैसे प्रतिष्ठित स्थानों पर आतंकवादियों का कब्जा रहा। तत्कालीन कांग्रेस सरकार की प्रतिक्रिया? जांच, डोजियर सौंपना, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करना। सुरक्षा तंत्र की विफलताएं और समन्वय की कमी स्पष्ट थी। क्या पाकिस्तान पर कोई सीधा, दंडात्मक प्रहार हुआ? नहीं। क्या हम मुंबई ट्रेन धमाके भूल सकते हैं, जिसमें 200 से अधिक जानें गईं और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए? या जयपुर धमाके, जिसने पिंक सिटी को 63 निर्दोषों के खून से लाल कर दिया? हर बार वही कहानी दोहराई गई – जांच, निंदा, मुआवजे की घोषणाएं, लेकिन आतंकवाद की जड़ पर प्रहार करने का संकल्प नदारद था। भारत एक ‘सॉफ्ट स्टेट’ की छवि बना चुका था, जो केवल घाव सहना जानता था, डोजियर लिखता रहा और निर्दोष मरते रहे।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। जब उरी में हमारे 19 सैनिक शहीद हुए, तो भारत ने केवल 10 दिनों के भीतर नियंत्रण रेखा (LoC) पार कर आतंकी लॉन्च पैड तबाह कर दिए – सर्जिकल स्ट्राइक। यह एक साहसिक और अभूतपूर्व कदम था जिसने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा। जब पुलवामा में 40 जवानों की शहादत हुई, तो भारत ने 12 दिनों के भीतर पाकिस्तान के बालाकोट में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शिविर पर हवाई हमला किया। यह हमला भारत की बढ़ती सैन्य क्षमता और राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रमाण था। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं कहा कि यह “नया भारत” है जो दुश्मन के घर में घुसकर मारेगा। यही फर्क है निर्णायक नेतृत्व और पिछली सरकारों की नीतिगत पंगुता में।